Sunday, September 30, 2007

हाथी के दाँत (Hypocrisy)

1
न मांग में सिन्दूर है
न गले में मंगल-सूत्र है
और शिकायत ये कि
भारतीय संस्कृति
स्वीकारता नहीं सुपुत्र है

2
मेरा ये विचार है कि
भारत का विकास हो
सम्पन्न हो खुशहाल हो
रोजी-रोटी सबके पास हो
सुनते ही कि DOLLAR गिर गया
सारा बुखार उतर गया
इन्तज़ार है उस दिन का
जब एक DOLLAR में
मिलते रुपये पचास हो

3
भई सच पूछो तो
AMERICA में भेद-भाव है
और उपर से
झेलने अनगिनत उतार-चढ़ाव है
जो नौकरी आज है वो कल नहीं
चिन्ता रहती है हर पल यही
अब तो भारत में भी नौकरिया ढेर हैं
और मां-बाप के भी कबर में पैर है
सोचता हूं हिन्दुस्तान में बस जाऊ
बस पहले AMERICAN CITIZEN बन जाऊ

4
दस SECOND के दर्शन से
भाग्य हमारे खुल जाएंगे
नदी के ठन्डे पानी से
पाप हमारे धुल जाएंगे
पंडित और पुजारी
जो हमें ये समझाते हैं
नदी-मन्दिर छोड़ के
खुद ही भाग जाते हैं
AMERICA के MAKESHIFT मन्दिर में
GREENCARD-धारी पुजारी बन जाते हैं

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2 comments:

Anonymous said...

सिन्दूर लगाने और मंगल सूत्र पहनने का अधिकार एक स्त्री को तभी मिलता है जब उसका विवाह होता है और एक पुरुष उसके जीवन में आता है। अगर वह पुरुष उस स्त्री के जीवन में न रहे - मृत्यु के कारण या किसी और वजह से - तो यह अधिकार भी स्त्री से वापिस ले लिया जाता है, चाहे उसने कितने भी इन्हें चाहा हो।

क्या सिर्फ यही hypocricy है की आजकल की स्त्री सिन्दूर और मंगल सूत्र की परम्परा का आदर नहीं करती? क्या यह hypocricy नहीं कि इन्हें देने और ले लेने का अधिकार एक पुरुष का है? इस पर भी तो कुछ कहिये।

Rahul Upadhyaya said...

हर विषय पर मैं ही लिखूँ, क्या यह आवश्यक है? आपने अच्छा मुद्दा उठाया है. मैं तो कहता हूँ कि आप ही इस विषय पर कुछ लिख डालें. मेरा लेखन भी कुछ-कुछ ऐसे ही आरम्भ हुआ था. मुझे मेरे पसंद के विषयों पर कविताओं का अभाव दिखता था. सो सोचा शिकायत की बजाय क्यों न खुद ही लिख दिया जाए.