Friday, November 30, 2007

ऐ दौलत तेरे बंदे हम


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

ऐ दौलत तेरे बंदे हम
ऐसे है हमारे करम
अपनो से जुदा
चाटे बाँस का जूता
ताकि 'मिलियन' तो हो कम से कम

जब 'ले-आँफ़' का हो सामना
तब तू ही हमें थामना
कोई बुराई करें
हम बड़ाई करें
तूझको ही ईश्वर जानना
बढ़ चले 'केसिनो' को कदम
हर तरह के करें खोटे करम
अपनो से जुदा ...

ये डाँलर गिरा जा रहा
और एन-आर-आई घबरा रहा
हो रहा बेखबर
कुछ न आता नज़र
सुख का सूरज छिपा जा रहा
है किस 'करेंसी' में वो दम
जो अमावस को कर दे पूनम
अपनो से जुदा ...

बड़ा गरीब है एन-आर-आई
चाहे लाखों में कर ले कमाई
सर झुकाए खड़ा
हाथ फ़ैलाए खड़ा
पेट काट काट के जोड़े पाई-पाई
दिया तूने जो 'मिलियन' सनम
नहीं होगी भूख इसकी खतम
अपनो से जुदा ...

(भरत व्यास से क्षमायाचना सहित)

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