Friday, March 14, 2008

मैं कवि हूँ

मैं कवि हूँ 

कोई किरदार नहीं 
कि एक कुर्ते-पजामें में सिमट जाऊँ 

 मैं कवि हूँ 
कोई सलाहकार नहीं  
कि तुम्हे जीवन जीने की राह दिखाऊँ 

मैं कवि हूँ 
कोई मददगार नहीं  
कि तुम्हारा दु:ख-दर्द मिटाता जाऊँ 

मैं कवि हूँ 
कोई खानसामा नहीं  
जो menu के मुताबिक 
कभी मीठा 
कभी खट्टा 
तो कभी चटपटा 
Item पेश करता जाऊँ 

 मैं कवि हूँ 
कविता मेरा शौक है, मेरा पेशा नहीं  
और तनिक भी शोक नहीं  
कि इसमें पैसा नहीं   

मैं कवि हूँ 
कविता मेरा व्यवसाय नहीं  
शब्दों से खेलता हूँ 
शब्दों की खाता नहीं  
इन्हें बेच कर 
खोलना मुझे बैंक खाता नहीं   

मैं कवि हूँ 
मेरे शब्द बहुरुपी हैं  
मैं भी बहुरुपिया हूँ 
बातें ज़रुर बनाता हूँ 
उनसे बनाता नहीं रुपया हूँ 

 मैं कवि हूँ 
कभी दुनिया की नहीं परवाह की 
जब जो अच्छा लगा उस पर वाह की 

मैं कवि हूँ 
सच कहने से घबराता नहीं  
जानता हूँ कि जिस दम घुटने टेक दूँगा  
उस पल से मेरा दम घुटने लगेगा 

मैं कवि हूँ 
जब भी कहता हूँ 
सच ही कहता हूँ 
लेकिन मैं 'मेरा' ही सच कहता हूँ 
ये आवश्यक तो नहीं कि हमारे-तुम्हारे विचार मिले 
और ये भी उद्देश्य नहीं कि इसके लिए बधाई मिले 

मैं कवि हूँ 
जब भी कहता हूँ 
सच ही कहता हूँ 
लेकिन मैं 'आज' का ही सच कहता हूँ 
मुमकिन है कल मैं खुद ही अपनी बात से पलट जाऊँ 

समय बहता है
मैं भी उसके साथ बह जाऊँ 
आज यहाँ हूँ
कल कहीं और चला जाऊँ 
 तुम लकीर के फ़कीर मत बनना 
मेरे शब्दों से चिपके मत रहना 

मैं कवि हूँ 
मेरा खुद का कोई ठिकाना नहीं  
मेरा कोई भी शब्द अंतिम नहीं  

राहुल उपाध्याय | 14 मार्च 2008 | सिएटल

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2 comments:

Anonymous said...

Aap woh kavi hain jo subke dil ke baaton ko kavita mein kehte hain. Aapki poems hamein hasati aur rulati hain; Intense label wali to ek dum dil ko chhoo jati hain.

Amit Gupta said...
This comment has been removed by the author.