Saturday, April 12, 2008

सच

मैं लिखता नहीं  हूँ 

मुझसे लिखा जाता नहीं है 
यूँ अपनों से नाता तो तोड़ा जाता नहीं है 

मैं कहता नहीं हूँ 
मुझसे कहा जाता नहीं है 
यूँ हर किसी को आईना दिखाया जाता नहीं है 

मैं सुनता नही हूँ 
मुझसे सुना जाता नहीं है 
हर मुद्दे पर तटस्थ तो रहा जाता नहीं है 

मैं करता नहीं हूँ 
मुझसे किया जाता नहीं है 
महफ़िल दर महफ़िल अभिनय किया जाता नहीं है 

मैं जीतता नही हूँ 
मुझसे जीता जाता नहीं है 
हर कदम तो फूंक-फूंक कर रखा जाता नहीं है 

राहुल उपाध्याय | 12 अप्रैल 2008 | वाशिंगटन डी सी 

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


2 comments:

Anonymous said...

Bahut Sundar, Rahul! Is kavita mein kavi hone ki feeling ko aapne bahut sundar tarah se kaha hai. Isse pahle bhi aapne do aisi hi sundar kavita likhi thi - "Mein Kavi Hun" aur "Badhai". Very nice!

डा. अमर कुमार said...

क्या अंदाज़े बयाँ है !