Monday, April 14, 2008

वीसा से वीसा तक

हुआ स्नातक, मिली दिशा
जैसे तैसे हथियाओ वीसा

वीसा आँफ़िसर से झूठ बोला
हनुमान जी को चढ़ा चोला
तिरुपति को दिया पैसा
तब जा के मिला वीसा

डाँलर को ही सदा पूजा
इसके सिवा न दिखा दूजा

पहले आया पासपोर्ट में वीसा
फिर आया पर्स में वीसा
अर्थ चंदन इतना घिसा
छा गई घोर निशा

अच्छा खासा कमाता था
हँसता था, हँसाता था

'लोन' लिया, 'लोनली' हुआ
सुख चैन उड़न छू हुआ
इरादा था बनूँगा राजा
बज गया मेरा ही बाजा

ये उलट-फेर कैसे हुआ?
किसकी लगी बद-दुआ?

धन के आगे भी जहान था
इससे मैं अनजान था

पापी पेट का दोष नहीं 
मन को ही संतोष 
नहीं 

बिल्डिंग ज़रूर बनी अच्छी थी
नींव मगर बहुत कच्ची थी

राहुल उपाध्याय | 14 अप्रैल 2008 | मोंटाना के गगन में

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