Wednesday, May 21, 2008

मैं 25 साल बाद

मैं इस साल दीवाली पर अपने घर जाऊँगा
25 साल बाद
पहली बार दीवाली पर अपने घर जाऊँगा
बहुत सारी यादें संजो कर जाऊँगा
न जाने कितनी वापस ले कर आऊंगा

बचपन में कभी कोई चीज नहीं मांगी
क्या मैं अब मांग पाऊंगा?
बचपन में कभी पटाखें नहीं छोड़े
क्या मैं अब छोड़ पाऊंगा?
बचपन में कभी गले नहीं लगाया
क्या मैं अब गले लगा पाऊंगा?

बचपन में मैं पाँव तो छू पाता था
लेकिन दिल की बात छुपा जाता था
क्या मैं अब बतलाऊँगा
और
क्या मैं अब छुपाऊंगा

गुज़र गई हैं हज़ारों रातें
पुरानी हो चुकी हैं जो बातें
क्या मैं उन्हें फिर से छेड़ पाऊंगा?
अनछुए विषयों को
क्या मैं छू पाऊंगा?
ओझल होते हुए सम्बंधों को
क्या मैं सम्बोधित कर पाऊंगा?

या फिर हमेशा की तरह
जाऊँगा और बस जा कर आ जाऊँगा

मैं 25 साल बाद
अपने घर दीवाली पर जाऊँगा
बहुत सारी यादें संजो कर जाऊँगा
न जाने कितनी वापस ले कर आऊंगा

सिएटल,
21 मई 2008

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3 comments:

Anonymous said...

Bahut sundar kavita hai, Rahul. Dil se yeh dua hai hum readers ki ke aap jab Diwali par ghar jao to khoob saara pyaar pao - itna ki man mein koi kami na rahe. Phir aap vapis aa kar ek aur kavita likh kar humein apna experience batao. God bless you!

Dinesh Arya said...

Bahut Khoob!

Anonymous said...

Aaj itne saalon ke baad yeh kavita phir se padhi, aur phir dil ko chhoo gayi. May 26th, 2008 ko jo dua thi woh aaj bhi hai aapke liye..