Wednesday, May 28, 2008

कविता बुरी हो गई

सच कहते कहते कविता बुरी हो गई
सच लिखते लिखते कलम छुरी हो गई

चुटकला समझ कर ठहाका लगाते थे जो
मेरी कविता से आज उनकी दूरी हो गई


हमेशा की तरह बस बेला था मैंने
तप कर आग में वो तंदूरी हो गई

आप ही खामखाह लहूलुहान हो गए
मेरे हिसाब से तो शाम सिंदूरी हो गई

फ़क़त शौक था राहुल का कविताएँ लिखना
ज़िंदा रहने के लिए आज वो जरूरी हो गई

सिएटल,
28 मई 2008

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: