Thursday, July 10, 2008

मदद

तुमने बताया मर्ज़
मैंने तुम्हे दवा दी
तो कौन सा गुनाह किया?
लेकिन तुमने?
दवा थी कड़वी
इसका मुझे इल्जाम दिया

तुमने शिकायत की
कि ज़िंदगी बेरंग सी है
और मैंने उसमें रंग भरे
लेकिन तुम?
तुम खुद ही रंग बदल गई

तुम थी मझधार में
मैंने तुम्हे किनारा दिया
लेकिन तुमने?
तुमने किनारे पर आते ही
मुझसे किनारा किया

तुमने मांगी मदद
मैंने अपना हाथ बढ़ाया
तो कौन सा गुनाह किया?
लेकिन तुमने?
तुमने इसे
धृष्टता का नाम दिया

अच्छा बाबा
अब हाथ जोड़ता हूँ
मानता हूँ कि
मैं ही पागल था
कि जब तुम बेसहारा थी
मैंने अपना कंधा दिया
लेकिन तुमने?
मेरे दूसरे कंधे पर कोई और था
इसका मुझे इल्ज़ाम दिया

प्यार एक से ही होता है
ये तो पता था
लेकिन मदद भी एक की ही की जा सकती है
ये अब समझ में आया

सिएटल,
10 जुलाई 2008

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