Monday, September 22, 2008

हज़ार खंजर

मेरा महबूब भी
कितनी बड़ी तोप है
आँखें चार किए हुए
हुए नहीं चार दिन
और हज़ारों खंजर का
थोप देता आरोप है

काश
ये मैं पहले जान लेता
कि जो दे देता है दिल
वही फिर ले लेता है जान
जब बरसता
उसका प्रकोप है

पहले
वो जब खुश था
तो रेन-फ़ारेस्ट की तरह सब्ज़ था
आजकल
गुस्सा है
तो ठंडा-ठंडा युरोप हैं

जल्लाद से भी बढ़कर
अगर कोई है
तो वो मेरा माशूक़ है
बिना अंतिम इच्छा पूछे ही
खींच लेता वो रोप है

सिएटल,
22 सितम्बर 2008
==============
रेन-फ़ारेस्ट = rain forest
सब्ज़ = हरा-भरा
युरोप = Europe
रोप = rope, रस्सी

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5 comments:

seema gupta said...

जल्लाद से भी बढ़कर
अगर कोई है
तो वो मेरा माशूक़ है
बिना अंतिम इच्छा पूछे ही
खींच लेता वो रोप है
" wah, kya kehne.."

Regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

achcha laga

परमजीत सिहँ बाली said...

जल्लाद से भी बढ़कर
अगर कोई है
तो वो मेरा माशूक़ है
बिना अंतिम इच्छा पूछे ही
खींच लेता वो रोप है

बढिया लिखा।

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया...

Yogi said...

khoob.........

Good to see a poem like this...
Comprising of 2 languages...
Nice !!
achha likha hai....

Do visit http://tanhaaiyan.blogspot.com

When free....