Friday, June 10, 2011

मुर्गी चाहिए या अंडे?

अपना धन
दूर देश की बैंकों में
रंग बदल के बैठा है

आओ चलो
कुछ करें
देशवासियों ने आंदोलन छेड़ा है

धन क्या है?
धन तो हाथ का मैल है
आएगा
और जाएगा

लेकिन
उन लोगों का क्या होगा
जो देश छोड़-छाड़ के बैठे हैं

लाख बुलाने पर भी
वसुधैव कुटुम्बुकम का
राग अलापते रहते हैं

सिएटल । 513-341-6798
10 जून 2011

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


8 comments:

Anonymous said...

http://navkislaya.blogspot.com/

Pravin Dubey said...

आपका विचार सराहनीय है|
बहुत बधाई आपको

Unknown said...

ache vichar hain..

डॅा. व्योम said...

एक अच्छे आन्दोलन को सफल बनाने की दिशा में प्रेरित करती अच्छी कविता है। वधाई।

Unknown said...

बहुत अच्छी कविता है। वधाई।

prabhat said...

हा हा हा...बहुत अच्छा लिखा है, राहुल जी...बातें धन से शुरू हो रही है.....एक बार धन आ जाए, तो लोग भी आ जायेंगे...

AAKASH MISHRA said...

to baat yehi aakar atak gai hai ki hume paisa nahi chahiye desh chhod ke gay log chahiye --lekin aapka likhna dhik nahi kyonki vo paise ke chakar me hi gay hai --agar hum paisa hi chhod denge to ek din ye bhart jo tarki phisal phisal ke kr rha hai vo bhi chhod denga

Anonymous said...

i am very impressed with ur blog. please kindly add my one of my newly created blogs as below:

http://np-girl.blogspot.com/
http://shresthasam-entertainment.blogspot.com/
http://kantipur-sam.blogspot.com/
http://human-health100.blogspot.com/
http://nptvs.blogspot.com/