Sunday, November 4, 2012

सीमाओं का उल्लंघन

वो आते हैं
और आकर लौट जाते हैं
और हम सीमाओं में बंधे
यहीं के यहीं रह जाते हैं


न हम अयोध्या जा सकते हैं
न वो लंका में रह पाते हैं
न हम सीमाओं का उल्लंघन कर सकते हैं
न वो सीमाओं का उल्लंघन कर पाते हैं


माना कि ईश्वर की सत्ता है चारों तरफ़
लेकिन कुछ स्थान तो हैं जो अवश्य हैं भिन्न
तभी तो राम अयोध्या चले जाते हैं
और कृष्ण लौटकर फिर ब्रज नहीं आते हैं


कोई परमार्थ के प्रलोभन में फंसता है
तो कोइ कर्मार्थ के संयोजन में फंसता है


न हम सीमाओं का उल्लंघन कर सकते हैं
न वो सीमाओं का उल्लंघन कर पाते हैं


वो आते हैं
और आकर लौट जाते हैं
और हम सीमाओं में बंधे
यहीं के यहीं रह जाते हैं


4 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

बहुत interesting thought है कविता में। सीमाओं में बंधना कभी मजबूरी होती है तो कभी एक conscious choice...