Saturday, December 1, 2012

लहू


हम और आप तो बस बात करते हैं पौरूष की
और उधर उनका सामना लहू से हर माह होता है

जब मिटते हैं सितारे टिमटिमाते हज़ारों
तब जाके कहीं पैदा आफ़ताब होता है

ये बनने की मिटने की हैं बातें कुछ इतनी अजीब
कि समझाए न समझ आए, बस खुद-ब-खुद अहसास होता है

जो करते हैं प्यार, वो होते हैं खास
उन्हीं के लिए तो लहूलुहान सूरज सुबह-ओ-शाम होता है

था उसमें भी कुछ, था मुझमें भी कुछ
वर्ना ऐसे ही थोड़े किसी का साथ किसी के साथ होता है

24 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798

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3 comments:

Anonymous said...

"लहूलुहान सूरज सुबह-ओ-शाम होता है" - कितने सुन्दर expression में sunrise और sunset को describe किया (!) हैं आपने.

कविता की हर दो lines में कुछ सोचने और समझने की बात है - very nice!

Madan Mohan Saxena said...

शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब.

Anonymous said...

waah