Thursday, September 12, 2013

मैं तूझे बेच पाता कैसे

हो धूप या बारिश या बर्फ़

सबसे बचाया तूने

मेरे बच्चों को स्कूल

पहुँचाया तूने

मेरे बेटे को लाइसेंस

दिलाया तूने

अच्छे-बुरे हर बोझ को

उठाया तूने

ऊँचे-नीचे, टेढ़े-मेढ़े, कच्चे-पक्के रास्तों को

सुगम बनाया तूने

मैं तूझे बेच पाता कैसे



दुनिया भर की अच्छी-बुरी खबरेँ

सुनाई तूने

पीटर सेगल के फ़ट्टे

सुनाए तूने

कार-टॉक के ठहाके

गूँजे तूझमें

कभी किशोर तो कभी लता के नगमे

सुनाए तूने

मैं तूझे बेच पाता कैसे





मेरे हाथों से

मेरी आंख़ों से

मेरी यादों से

जुड़ी मलिका

मैं तुझे बेच पाता कैसे

सो तूझे एन-पी-आर को दान दे आया हूँ

ऐसा लगता है कि

किसी अपने को

हमेशा-हमेशा के लिए

छोड़ आया हूँ



तेरी एक चाबी

मेरे बेटे के की-चैन में

गलती से रह गई है

उसे छू कर मैं तेरा भरम कर लूँगा

और तेरे न होने के ग़म को भूला दूँगा



शायद ये गलती नहीं थी

तेरी ही सोच थी

कि तू मेरे हाथ कोई निशानी छोड़ जाए



11 सितम्बर 2013

सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

कविता funny भी है और sentimental भी। जिस के साथ इतनी प्यारी यादें जुडी हों - जिसमें पहली बार हम अपने बच्चे को hospital से घर लाये हों, जिस पर chains लगाकर हम बर्फ में भी grocery लाये हों, जिसने accident में खुद चोट खाकर हमें बचाया हो, जिसने दो-घड़ी अकेले में रोने के लिए हमें जगह दी हो - उसे छोड़ना आसान नहीं है चाहे हम कितना भी अपने दिल को समझा लें कि "जो जन्मता है, वो मरता है; जो प्यारता है, वो ग़मता है..."

कविता का end मुझे सुन्दर और comforting लगा:

"शायद ये गलती नहीं थी
तेरी ही सोच थी
कि तू मेरे हाथ कोई निशानी छोड़ जाए"