Tuesday, September 24, 2013

किनारे दूर ही रहे तो अच्छा लगता है

किनारे दूर ही रहे तो अच्छा लगता है
बहता दरिया वरना इक नाला लगता है

कश्तियों का भी तो कुछ सोचो यार ज़रा
साहिलों पे बंधना क्या उचित मेहनताना लगता है?

कुंजियों को जबसे तालों में कैद किया है
हर मुश्किल का हल अब आसां लगता है

दिल में हो उमंगें और कप भी हो भरे-भरे
पीता तो नहीं लेकिन स्वप्न सुहाना लगता है

सागर मिले कई नदियों से और नदी मिले एक सागर से
प्रकृति के नियमों में 'राहुल' घोटाला लगता है

24 सितम्बर 2013
सिएटल । 513-341-6798

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2 comments:

Anonymous said...

हर दो lines कुछ बढ़िया कहती हैं! कश्तियों को बंधने की बात अच्छी और सही लगी। कविता की ending में प्रकृति के नियमों में घोटाला होने की बात मज़े की है!

Anonymous said...

"किनारे दूर ही रहें तो अच्छा लगता है
बहता दरिया वरना इक नाला लगता है"

कविता की यह दो lines अच्छी हैं। दरिया और नाले का contrast थोड़ा extreme लगा। शायद आपकी कविताओं में "नाला" शब्द पहले कभी आया नहीं है।

"कुंजियों को जबसे तालों में कैद किया है
हर मुश्किल का हल अब आसां लगता है"

Ready-made solutions को ताले में रखने की बात बहुत बढ़िया लगी। खुद निकाला हुआ हल चाहे perfect न भी हो, फिर भी satisfying लगता है। इस बात से कुछ similar lines मन में आयीं:

कुंजियों को जबसे तालों में कैद किया है
हर मुश्किल का हल अब अपना लगता है

और

कुंजियों को जबसे तालों में कैद किया है
दिमाग का ताला तबसे खुलता लगता है

Last में घोंटाले वाली बात बहुत funny हैं! :)