Saturday, October 26, 2013

दाना दाना चुगता नहीं

दाना दाना चुगता  नहीं
बिन बीन साँप झूमता नहीं

बिना बिना कुछ होता नहीं
वीणा बिना सुर लगता नहीं

बीन बीन के मैं हार गया
दाल में काला दिखता नहीं

ज़िंदाँ है तो ज़िंदा है बंदा
छूट के तो बंदी बचता नहीं

ज़माने पे जमा ना रौब हमारा
रोब से ही रौब पड़ता नहीं

राहुल उपाध्याय | 26 अक्टूबर 2013 | सिएटल 
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दाना = ज्ञानी; बीज
बिना = बगैर; आधार
ज़िंदाँ = जाईल 
रोब = robe


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1 comments:

Anonymous said...

"बीन बीन के मैं हार गया
दाल में काला दिखता नहीं

ज़िंदा है तो ज़िंदा है बंदा
छूट के तो बंदी बचता नहीं"

Very nice! :)

इसमें Wordplay बहुत मुश्किल है - बिना glossary के समझ नहीं आता - जैसे "जिंदा" का meaning prison भी होता है, "दाना" का ज्ञानी, "बिन" का आधार - मुझे सिर्फ regular meaning ही पता था। कविता अच्छी है!