Sunday, July 19, 2015

फ़ीते फट जाए तो जूते फेंका नहीं करते


फ़ीते फट जाए तो जूते फेंका नहीं करते
आग लग जाए तो भुट्टे सेंका नहीं करते

जीवन है निर्धारित, जीवन है नियमित
कभी हम ऐसा तो कभी वैसा नहीं करते

जब फँसी हो कश्ती मँझधार में किसीकी
तो देते हैं सहारा, किनारा नहीं करते

अपनों से भी गिला क्या करता है कोई
कुछ होती हैं बातें जिन्हें छेड़ा नहीं करते 

पिक्चर देखनी है तो मनपसंद देखो
एक न मिले तो दूजी देखा नहीं करते

राहुल उपाध्याय | 18 जुलाई 2015 | दिल्ली 

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4 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना पांच लिंकों का आनन्द में मंगलवार 21 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Anonymous said...

कविता की हर दो lines meaningful हैं - उनका literal, simple meaning भी अच्छा है और गहरा meaning भी अच्छा है।

सुशील कुमार जोशी said...

बढ़िया ।

शारदा अरोरा said...

badhiya lagi rachna ..