Wednesday, October 7, 2015

शिकायत है नज़्म में नज़ाकत नहीं



शिकायत है नज़्म में नज़ाकत नहीं
ताक़त है लेकिन शराफ़त नहीं

लिखता हूँ जो दिल में उभरते हैं भाव
कविताओं के शिल्प में महारत नहीं

होगी पश्चिम में हज़ारों ही ऐब
दूध का धुला भी कोई भारत नहीं

मैं लेता हूँ जब भी किसी दूसरे का पक्ष
ये आदत है मेरी, अदावत नहीं

इबादत करूँ तो भी वो करते हैं शक़
कि संकट की इबादत इबादत नहीं

अदावत = दुश्मनी
इबादत = पूजा

7 अक्टूबर 2015
सिएटल । 425-445-0827


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1 comments:

Anonymous said...

Poet अपने मन के भाव (और दिमाग के विचार) कविता के form में लिखकर दुनिया से share करते हैं। उनके मन में जो सोच आती है और जैसे भाव उठते हैं, वही कविता का form लेते हैं। इसी तरह पढ़ने वालों की भी जैसी सोच या भावना होती है उन्हें वैसी ही कविताएं (या lines) अच्छी लगती हैं। एक कोमल भावनाओं की रचना पढ़कर किसी sensitive reader को लगता है कि जैसे poet ने उन्हीं के मन की भावना लिख दी है। एक strong कविता के विचारों से सहमत होकर किसी opinionated reader को लगता है कि poet ने कितनी बढ़िया बात कह डाली है, कितनी सही चोट पहुँचाने वाला सवाल किया है - सुनकर वाह कर उठते हैं। बात लिखने वाले और पढ़ने वालों के विचार मिलने की है। लेकिन कभी-कभी हमारे विचार कविता से न भी मिलते हों, फिर भी opposing विचारों की respect करते हुए या effort को appreciate करते हुए या लिखने के style को अच्छा जानते हुए कविता को पसंद करना चाहिए।