Wednesday, February 25, 2015

झूठ है कि सच हमें पसंद है


आईना भी सच बोलता
तो कौन उसे पास रखता
सूरज भी सदा चमकता
तो कौन उसे पूजता

सूरज हो, चाँद हो
राम हो, श्याम हो
खोट का ही मोल है
परिवर्तन से ही मोह है

जो
न गिरता है, न सम्हलता है
न डूबता है, न उगता है
न घटता है, न बढ़ता है
उसे कौन पूछता है
उसे कौन पूजता है

झूठ है कि सच हमें पसंद है

जो सच है
वो शाश्वत है
तटस्थ है
पूछो, तो एक ही जवाब
पूजो, तो कोई न लाभ

इसीलिए
पाषाण पूजे जाते हैं दो-चार मिनट
और 
जी-हज़ूरी की जाती है
साधु, गुरू, बॉस, बीवी, नेता आदि की
दिन-रात

खोट का ही मोल है
परिवर्तन से ही मोह है

25 फ़रवरी 2015
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Friday, February 20, 2015

बुद्ध और गांधी



बेड़ियाँ काट कर
बेड़ा पार किया
तो क्या ख़ाक किया

मज़ा तो तब है
जब सबको
साथ लेकर चलो
और 
सबका उद्धार करो

20 फ़रवरी 2015
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Wednesday, February 18, 2015

उपसंहार



जीते जी
जो कुछ नहीं 
जीत पाते
उन्हें भी हम
मरणोपरांत
हार ही देते हैं

18 फ़रवरी 2015
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Tuesday, February 17, 2015

न मैं आम हूँ, न मैं ख़ास हूँ



न मैं आम हूँ
न मैं ख़ास हूँ
और न ही मैं खाँसता हूँ

न मुझे टी-बी का रोग है
और न ही सी-एम बनने का शौक़ है

तुमने
कुछ भाषण दिए
कुछ पोस्टर लगाए
कुछ वादे किए
और मैंने तुम्हें वोट दिया

बस इतना ही हमारा रिश्ता है
इसके आगे कुछ नहीं 

चुनाव के बाद
तुम अपने रास्ते
मैं अपने

मीडिया वालों का काम ही है मीमांसा करना
सो वे करेंगे
लेकिन मुझे
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
कि
कौन कौनसे वादे पूरे करता है 
या नहीं करता

मेरे बच्चे
कल भी
अंग्रेज़ी, गणित, फिज़िक्स, केमिस्ट्री पढ़ते थे
आज भी पढ़ेंगे

कल भी कम्पीटिशन की तैयारी करते थे
आज भी करेंगे

सरकारें आती हैं
सरकारें जाती हैं
लेकिन हमारे सपने नहीं बदलते

बच्चे
कल बढ़े हो जाएँगे 
कुछ कमाएँगे
घर बसाएँगे 
और यह क्रम बस यूँही चलता रहेगा

हम कल भी
फ़िल्में देखते थे
आज भी देखेंगे

हम कल भी
क्रिकेट देखते थे
आज भी देखेंगे

हम कल भी
गाने सुनते थे
आज भी सुनेंगे 

ये जीवन है 
इस जीवन का
यही है, यही है, यही है रंग रूप 
थोड़े ग़म हैं, थोड़ी खुशियाँ
यही है, यही है, यही है छाँव धूप

ये ना सोचो इसमें अपनी
हार है कि जीत है
उसे अपना लो जो भी
जीवन की रीत है
ये ज़िद छोड़ो, यूँ ना तोड़ो
हर पल एक दर्पण है

(अंतिम पंक्तियाँ आनंद बक्षी की है)
17 फ़रवरी 2015
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Monday, February 9, 2015

इतना तो करना मोदी

इतना तो करना मोदी 
जब रिज़ल्ट दिल्ली का निकले
हार हो या जीत हो
सब अपने नाम लिख ले

केजरीवाल की जय हो
'आप' की विजय हो
सशक्त विपक्ष उदय हो
सब अपने नाम लिख ले

गंगा मलिन पड़ी हो
जनता दुखी बड़ी हो
प्रश्नों की लगी झड़ी हो
सब अपने नाम लिख ले

काला धन बढ़ा-चढ़ा हो
चंदे में आ जुटा हो
हिसाब में घपला हो
सब अपने नाम लिख ले

कश्मीर में हुआ दगा हो
भ्रष्टों का हुआ भला हो
अपनों से हुआ खफ़ा हो
सब अपने नाम लिख ले

(किससे क्षमा माँगू? अनूप जलोटा से?)
9 फ़रवरी 2015
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Sunday, February 8, 2015

लो हारे मोदी, लो हारे मोदी



लो हारे मोदी, लो हारे मोदी
एक्ज़िट पोल्स वालों के अनुमान हैं ये
गली-गली में हो रहे ऐलान हैं ये 

वोट दिया, बहुमत दिया
कुछ और तो इनके पास नहीं 
जो तुमसे थी माननीय मोदी
भगवान से भी थी वो आस नहीं 
जिस दिन से हुए तुम प्रधानमंत्री 
वादाखिलाफ़ी से बड़े परेशान हैं ये

सुनते हैं तुम्हारी दुनिया में 
दो दिल मुश्किल से समाते हैं
क्या ग़ैर वहाँ अपनों तक के
साए भी न आने पाते हैं
ये दिल्ली है दिलवालों की
बेदिली को गए पहचान हैं ये

मोदी महोदय, आपकी ये हार
हार है आपकी राजनीति की
जो सच है उसे अब मान भी लो
ये हार है आपकी कूटनीति की
भाजपावाले क्यूँ बौखलाए हैं
क्या बात है क्यूँ हैरान हैं ये

(शैलेंद्र से क्षमायाचना सहित)
8 फ़रवरी 2015
सिएटल | 513-341-6798

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इस रचना की प्रेरणा घनश्याम गुप्ताजी की फ़ेसबुक अपडेट से मिली:


Friday, February 6, 2015

बादल और क्लाउड

उधर बिन बादल सब सून है

खेत सूखे, खलिहान सूखे
कुत्ते-बिल्ली कपड़े चूसे
नल पानी से ऐसे रूठे
जैसे पक गई जनता
सुन-सुन वादे झूठे

गहरा कुँआ छोटा दिखे
पास कोई न फटकता दिखे
ईंट-पत्थर, कूड़ा-कचरा
सब का सब भरता दिखे

खाल चिपके
मवेशी टपके
गिद्ध हर्षे
झटपट झपटे

और इधर बिन क्लाउड सब सून है

न ई-मेल है, न फ़ेसबुक है
न म्युज़िक है, न यू-ट्यूब है
हाथ में बस एक पत्थर है
जिस पे गुणा-भाग का हिसाब परखो
या तीन सौ - चार सौ काँटेक्ट्स निरखो
किसे फ़ोन करो, किसे पुकारो?
करो भी तो कोई न फ़ोन उठाए
उल्टे-सीधे कुछ फ़ोटो ले लो
ले तो लो पर किसे दिखाओ?
क्यूट-फ़नी-विटी कैप्शन कैसे लिखो?
किसे बधाई दो, किसे ढाढ़स बँधाओ?
किसे जताओ फ़ीलिंग लोनली?

उधर बिन बादल सब सून है
और इधर बिन क्लाउड सब सून है
बिन-बिन की बीन का बढ़ा ज़हरीला सुर है
प्रथम विश्व हो या तृतीय विश्व हो
अपनी-अपनी धुन में हर आदमी मज़बूर है

6 फ़रवरी 2015
सिएटल | 513-341-6798


Monday, February 2, 2015

जनता मोरी मैं नहीं सूट सिलायो


जनता मोरी मैं नहीं सूट सिलायो

मैं चाय बेचवा वारो छोरो
मारो वेतन भी मैंने छाड़्यो
मीडिया वारे हैं सब बैरी
सबने जाल बिछायो

ओबामाजी अमरीका से आए
साथ में अपनी बीवी लाए
मैं ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य निभायो
फ़ेसबुक वारे अत्याचारी बतायो

मीडिया वारे झूठे पक्के
झूठ को सच करे बकबक बक के
मुझे ही निर्लज्ज कहे
और मुझे ही चुनाव जीतवायो

मोरा अपना कोई नाहि
ना कोई बीवी, ना कोई भाई
सगरा जग है मोरा बैरी
किसीने न मुझे अपनायो

जितनो भी धन मैंने कमायो
सब को सब जनहित लगायो
तिस पर भी इलजाम लगायो
जनता मोरी मैंने ही सूट सिलायो 

(सूरदास से क्षमायाचना सहित)
2 फ़रवरी 2015
सिएटल | 513-341-6798