Sunday, March 6, 2016

अभिषेक

अभिषेक हो रहा था

और मैं 'शेक' कर रहा था
कि कहीं मुझे भी
दूध
घी
दही
शहद
उड़ेलना न पड़े

क़िस्मत अच्छी थी
मेरा नम्बर नहीं आया
और मैं बच गया
दूध
घी
दही
शहद
व्यर्थ में बहाने से
और
मना करके
जन-समुदाय का 
दिल दुखाने से

हो सकता है 
मैंने अगला जन्म 
बर्बाद किया हो

लेकिन आज तो
मैंने चैन की साँस ली

6 मार्च 2016
सिएटल | 425-445-0827

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2 comments:

Anonymous said...

अभिषेक simplicity, आदर, और प्रेम भाव के साथ करना चाहिए। Grand scale पर बहुत wastage करना अच्छी बात नहीं है। अगर आपने बहुत wastage होते देखी या भाव की कमी देखी तो दिल दुखना natural है।

Rahul Upadhyaya said...

मेरे सहपाठी की प्रतिक्रिया:

राहुल भैय्या!!

क्यों करते हो ऐसे
जिसे पढ़कर ठेस लगे जैसे।

दिल तोड़ कर रख देते हो
सबकुछ जानकर भी
पढ़े लिखो के नाम पर
धर्म को झींझोरकर रख देते हो।

अनायास, खिसियावट आती है
राहुल की बनावट आती है:-

हमारा राहुल ऐसा तो ना था
ठीक हुआ करता था
मीठी बातें करता था
दिल को भाता था
हरिक को लुभाता था।

अचानक क्या हो गया उसे US जाकर
क्यों खो गया, कहाँ लुप्त हो गया
जड़ों से दूर, अंधकार की रातों में
मंज़िलो से दूर, बेकार की बातों में
(कितना वक़्त है उसपर)
उलाहना देने में
पंगा लेने में
समाज को कुरेदने में
मतों को भेदने में
जो है नाहीं, उसे बताने में
जो है, उसे छुपाने में।

ना जाने इसको क्या मिलता है?
इसके दिल के कौनसे कोने में फूल खिलता है?

अगर आएँ दिल में उदगार उसके
तो अपने दिल की गति, हमारी भाभी को बता दे
अपनी क़लम रोककर, ग़लत भाव हटा दे।

पर नहीं!!!!
जो हम जैसे, ना सुनना चाहें,
ना पड़ना चाहें

ठानी है उसने,
अपनी बात सुनाने की
झूठी क्रांति दिखाने की
भ्रांति फैलाने की।

कभी कारवाँ चौथ पर, चाँद को ना छोड़ा
कभी दिवाली पर, दिल का दिया तोड़ा
होली पर रंग में भंग घोला
अब्ब लगे भाई, शिवरात्रि के पावन पर्व पे डोलने
अपने ठगे से सपने को, दुनिया को बोलने

अपना ऐसा ग्रूप बनाओ
उन्न सबको अपनी बात बताओ
अपनी बातों पे ताली पिटवाओ
अपने घर के आगे इक क़िला बनवाओ
जो करना है वो करो
जहाँ समझाना है वो समझाओ
उनकी सुनो
अपनी सुनाओ
उनकी धो ओ
अपनी धुलवाओ
अपने भगवान बनाओ
बना के मिटाओ

हमसे क्या!!!!

पर मेरे प्यारे भाई राहुल
इस्स ग्रूप पे अगर शिव रात्रि है
तो दूध चड़ाओ
उनका गुणगान गाओ
हिंदुस्तानी होने का मान बढ़ाओ।

वरना अपने तरकस के इन तीरों को
हमसब पे ना चलाओ।

मैं
रोक नहीं पाया चाह कर भी,
मेरी लगी कोई बात बुरी अगर
तो उसे दिल से ना लगाओ।


इसी अभिलाषा मे
तेरा मित्र