Saturday, April 2, 2016

मल और माला


जब भी निकलता हूँ टहलने
होता हूँ मैं ख़ाली हाथ
और
दूसरों के हाथ होती है एक थैली

कोई कम करता है अपने पाप को
तो कोई राहत देता है अपने श्वान को

कोई कट जाता है दुनिया-जहान से
तो कोई जुड़ जाता है अपने श्वान से

सोचता हूँ
क्या दोनों थैलियाँ कभी
एक हाथ होंगी?
मल और माला
साथ होंगी?

नहीं-नहीं 
ऐसा नहीं हो सकता
ऐसा सोचना भी पाप है

ईष्ट is ईष्ट 
And waste is waste
And never the twain shall meet. 

2 अप्रैल 2016
सिएटल | 425-445-0827
With apologies to Rudyard Kipling for altering his famous line from 
http://poetry.about.com/od/poemsbytitleb/l/blkiplingballadeastandwest.htm

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