Sunday, April 3, 2016

जड़ें हों गहरी


जड़ें हों गहरी
तो पत्तियाँ हरी हो जाती हैं
सच है कि झूठ
पता नहीं 
पर कविता में लिख दो
तो बात बड़ी हो जाती है

किसे फ़ुरसत है कि
बात की जड़ तक जाए?
हाँ, इसी बहाने
कईयों की पी-एच-डी हो जाती है

नसीब मुनासिब न हो
तो क्या-क्या नहीं हो जाता है
जो आपकी थी
किसी और की हो जाती है

भक्ति में शक्ति है
भक्ति में मुक्ति है
तभी तो 
शबरी मेज़बान
और अहिल्या बरी हो जाती है

हरि का नाम
हर हाल में लेते रहो
तो कहते हैं
ज़िंदगी सुनहरी हो जाती है

3 अप्रैल 2016
सिएटल | 425-445-0827


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1 comments:

Anonymous said...

4/9:
Start से ही कविता की lines बहुत अच्छी हैं। यह बात सच है कि अगर जड़ गहरी हो तो पत्ते झड़कर भी फिर निकल सकते हैं। अगर जड़ shallow हो तो किसी drought या storm का सामना करना मुशकिल होता है।

"भक्ति में शक्ति है, भक्ति में मुक्ति है
तभी तो शबरी मेज़बान और अहिल्या बरी हो जाती है" - भक्ति के बारे में यह बहुत सुंदर lines हैं।

कविता पढ़कर मन ख़ुश हो गया!