Friday, July 29, 2016

अब भी हैं कुछ निष्पाप चराचर



मेघों के कंधों पर रख के 
सबने बंदूक़ चलाई है 
कभी प्रियतम को बाँह में बाँधा 
कभी स्कूल की छुट्टी कराई है

कोई पर्यावरण पर भाषण देता
कोई देता किसानों की दुहाई है
हर कोई अपना उल्लू सीधा करता
पल-पल करता चतुराई है

खेत-खलिहान, पर्वत-सरिता
सब पुलकित हो जाते हैं
काले ऊटपटाँग बादलों से
उनके सपने पूरे हो जाते हैं

और उधर श्वेत रूई के फोहों से जो
एक क़तार में सुव्यवस्थित हो जाते हैं
उनसे भी अटकलें लगा-लगाकर 
बाल-वृंद रोमांचित हो जाते हैं

किसी को घोड़े, किसी को हाथी
किसी को बकरी-मेमने दिखने लग जाते हैं
बादलों की बनती-बिगड़ती आकृतियों में 
सबको अपने-अपने मनवांछित रूप मिल जाते हैं

मेघों के कंधों पर रख के 
सबने बंदूक़ चलाई है 
पर अब भी हैं कुछ निष्पाप चराचर
जो सहज आह्लादित हो जाते हैं

29 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
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निष्पाप = sinless
चराचर = movable and immovable






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