Tuesday, July 5, 2016

जो शत आह भर के भी न हताश हो


जो शत आह भर के भी न हताश हो
जिसके दिल में फिर भी न खटास हो
ऐसा इन्सान संत हो ज़रूरी नहीं
हो सकता है उसकी हीर न उसके पास हो

जो अपनी बात पर अडिग रहे
दुनिया-जहाँ से अनभिज्ञ रहे
चाहें लाख आएँ मुसीबतें 
अपने ध्येय पर केन्द्रित रहे
ऐसा इन्सान वीर हो ज़रूरी नहीं
हो सकता है हीर की उसे तलाश हो

जिसके हाथ में गुलाब हो
जिसके पाँव में थिरकाव हो
जो गली-गली झूमे मगन
जिसके राग में अनुराग हो
ऐसा इन्सान आशिक़ हो ज़रूरी नहीं
हो सकता है सच्चिदानंद का उसे आभास हो

5 जुलाई 2015
दिल्ली | +91-88004 20323

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