Thursday, August 18, 2016

बदनाम है मौसम कि बदलता है वो


बदनाम है मौसम कि बदलता है वो
बदलने को तो बदलती हवा भी है

पतंगा ही नहीं फड़फड़ाता है पर अकेला
लिपटने को मचलती शमा भी है

काश! हम भी किसी की बाँहों में होते
ये कैसी आज़ादी कि लगती सज़ा भी है

सुमिरन करूँ कि दु:ख में हूँ मैं
इसीलिए कहते हैं दर्द दवा भी है

हमने तो जीवन का मतलब ये जाना
इक दीपक बुझा तो इक जला भी है

18 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827







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