Saturday, September 3, 2016

घोषणापत्र एक weed का



(अगर आपके पास घर है, और घर के आजू-बाज़ू ज़मीन है, जहाँ आप अपना मनचाहा बाग़ लगाना चाहते हैं, तो weeds बिन बुलाए मेहमान की तरह चली आतीं हैं और आपके लिए एक चुनौती बन जाती है। weeds के लिए उपयुक्त हिंदी शब्द नहीं मिला, जिसमें वो भाव हो जो मैं यहाँ लाना चाहता हूँ।)

कहते हो जंगली मुझको 
मैं भी एक फूल हूँ
चुभता हूँ क्यूँ आँखों में?
उड़ती न धूल हूँ

तिरस्कृत कितना भी कर लो
चाहे न दो दाना-पानी
खिलना मेरी फ़ितरत है
खिलने की मैंने ठानी

जल चुकी घास सारी
झड़ चुके फल-फूल सारे
मैं ही हूँ एक हठधर्मी
जिसने की रंग की बौछारें 

तुम चाहे काट डालो
या फिर जड़ से उखाड़ो
खिलना मेरी फ़ितरत है
खिलने की मैंने ठानी

चढ़ता न पूजा की वेदी
गूँथता न कोई माला
सजता न गुलदस्ते में मैं
पहनती न बालों में बाला

कितना भी ठुकराया जाऊँ 
फिर भी मैं खिलता जाऊँ 
खिलना मेरी फ़ितरत है
खिलने की मैंने ठानी

बू आती बग़ावत की है
लगती हिमाक़त भी है
पर तुम ध्यान से सोचो 
तो ये तर्कसंगत भी है

करता न गिला-शिकवा
करता मैं कर्म अपना
खिलना मेरी फ़ितरत है
खिलने की मैंने ठानी

तुम क्यों हो लाल-पीले
क़ुदरत की लीला सारी
न होता डी-एन-ए ऐसा
न लेता ज़िम्मेदारी 

हो धरती का कोई कोना
मुझको हर जगह है होना
खिलना मेरी फ़ितरत है
खिलने की मैंने ठानी

3 सितम्बर 2016
सिएटल | 425-445-0827

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