Sunday, November 27, 2016

हर सुबह की शाम होती है

हर सुबह की शाम होती है

ज़िन्दगी यूँही तमाम होती है


ब्याहता का सुख राधा ने देखा

और ब्याही सीता बदनाम होती है


चलो चलें, कहीं और चलें

पत्थर की लकीरें इधर आम होती हैं


पत्थर के सनम, पत्थर के खुदा

अब किससे यहाँ दुआ-सलाम होती है


'गर होता कोई कॉमा, तो रूकते भी हम

पढ़ते-पढ़ते तुम्हें, सुबह शाम होती है


28 नवम्बर 2016

सैलाना | 001-425-445-0827

tinyurl.com/rahulpoems 







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1 comments:

Unknown said...

kaffi prerna yukt kavita hai
NEW YEAR WISHES 4 YOU