Thursday, August 25, 2016

चरणों में तेरे है माथ मेरा


चरणों में तेरे है माथ मेरा
कर रखके उद्धार कर नाथ मेरा

मैं हूँ पापी, मुझमें हैं अवगुण
कर रखके उत्थान कर नाथ मेरा

मैं हूँ दुखी, क्लेश में लथपथ
कर रखके संताप हर नाथ मेरा

मैं हूँ भिखारी, माँगू मैं पल-पल
कर रखके कल्याण कर नाथ मेरा

मैं हूँ दोषी, दोषी तुम्हारा 
कर रखके इंसाफ़ कर नाथ मेरा

25 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827

Sunday, August 21, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #100

Saturday, August 20, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #99

Friday, August 19, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #98

Thursday, August 18, 2016

बदनाम है मौसम कि बदलता है वो


बदनाम है मौसम कि बदलता है वो
बदलने को तो बदलती हवा भी है

पतंगा ही नहीं फड़फड़ाता है पर अकेला
लिपटने को मचलती शमा भी है

काश! हम भी किसी की बाँहों में होते
ये कैसी आज़ादी कि लगती सज़ा भी है

सुमिरन करूँ कि दु:ख में हूँ मैं
इसीलिए कहते हैं दर्द दवा भी है

हमने तो जीवन का मतलब ये जाना
इक दीपक बुझा तो इक जला भी है

18 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827







जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #97

Wednesday, August 17, 2016

महके फूल तो महकती फ़िज़ा भी है

महकें फूल तो महकती फ़िज़ा भी है
दहकें बदन तो सुलगती निशा भी है

हर तरफ़, हर जगह, है इश्क़ की बू
है ख़ुशी भी मगर कुछ गिला भी है

ऐसा नहीं कि मैंने इश्क़ किया नहीं 
कभी किसी को ख़त लिखा भी है

सब के सामने, सब कुछ कैसे कह दूँ?
तन्हाई में ख़ुद से वार्तालाप किया भी है

मान्यताएँ बदलें, या न बदलें
यदाकदा ईश्वर का नाम लिया भी है

17 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #96

Tuesday, August 16, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #95

Monday, August 15, 2016

एक झण्डे को देखा तो






जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #94

Sunday, August 14, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #93

Saturday, August 13, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #92

किसको अंक में भर लूँ?


किसके-किसके नाम 
याद करूँ?
किसके-किसके
भूलूँ?
क्या मैं ही हूँ
एक निरा बावरा
जो बे-सर-पैर 
की सोचूँ?

कभी किसी ने 
कुछ कह दिया
कभी किसी ने 
कुछ कहा नहीं 
किसकी बात
ज़हन में रखूँ?
किसकी चुप्पी 
को कोसूँ?

है दिमाग़ 
तो फिर आग भी है
मै जला
उसकी राख भी है
चिंगारी तो
बुझी नहीं 
पल-पल
राख कुरेदूँ

हर जगह
हर कोई हिदायत देता
बन चुके सब 
सदर-सरगना-नेता
किसकी बात को 
पल्लू में बाँधूँ?
किसकी बात
को छोड़ूँ?

तर्क-वितर्क की
बात नहीं है
सही-ग़लत का भी
हिसाब नहीं है
किसके आगे 
सर झुकाऊँ?
और किसके हाथ
मैं जोड़ूँ?

पग-पग पे
कोहराम बहुत है
गिनने लगो तो
संताप बहुत हैं
किसको अपने 
हाल पे छोड़ूँ?
किसको अंक में
भर लूँ?

13 अगस्त 2016
सिएटल । 425-445-0827








Friday, August 12, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #91

Thursday, August 11, 2016

अच्छा हुआ डायबीटीज़ हो गई


अच्छा हुआ डायबीटीज़ हो गई
सहर्ष प्रसाद अस्वीकार करने का 
लाइसेंस मिल गया

अच्छा हुआ डायबीटीज़ हो गई
बंधु-बांधवों से आवभगत न करवाने का
कारण मिल गया

अच्छा हुआ डायबीटीज़ हो गई
प्रकृति के सौन्दर्य को निहारने का
नित्य-नियम मिल गया

अच्छा हुआ डायबीटीज़ हो गई
संतों जैसा आहार-विहार-व्यवहार-विचार रखने का
सुअवसर मिल गया

अच्छा हुआ डायबीटीज़ हो गई
मेरी रगों में ख़ून है, पानी नहीं, इसका 
प्रमाण मिल गया

अच्छा हुआ डायबीटीज़ हो गई
ज़िन्दगी भर के लिए एक साथी
वफ़ादार मिल गया

11 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827
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आवभगत = hospitality
नित्य-नियम = daily routine



जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #90

Wednesday, August 10, 2016

रास्ते रास आए तो ऐसे


रास्ते रास आए तो ऐसे
जैसे पिकनिक पे जा रहे हैं
न आए तो ऐसे
जैसे मय्यत में जा रहे हैं

जो दिखती है राह 
वही सूझती है राह
वरना धूल में तो लठ्ठ 
कब से मारे जा रहे हैं

समझने की बातें 
समझता है कौन
सब एक दूसरे को
कुछ-न-कुछ समझाए जा रहे हैं

यदि हम होते
तो दंगा न होता
दावा करने वाले
दावानल बढ़ाए जा रहे हैं

कोई पढ़े, न पढ़े 
किसी को भाए, न भाए
कवि-हृदय
कविता बनाए जा रहे हैं

10 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827
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दावानल = forest fire

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #89

सुन्दरकाण्ड









Tuesday, August 9, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #88

Monday, August 8, 2016

चाहे कितना भी दूर हो


चाहे कितना भी दूर हो
चाँद आसपास ही लगता है
ये घर हो या वो घर हो
हर घर की खिड़की से
झाँकता रहता है

हम देखते हैं इसे
ये देखता है हमें 
रिश्ता कोई जाना
पहचाना लगता है

जानते हैं कि इसे हम 
अपना न बना पाएँगे 
फिर भी ये कहाँ
पराया लगता है

न समय का है पाबंद
न देता है रोज़ हाजरी
फिर भी बेसहारों का
सहारा लगता है

तुम भी एक दिन दूर के चाँद हो जाओगे
तब और भी क़रीब हो जाओगे
जबकि आज खींचा-खींचा सा
हमारा याराना लगता है

8 अगस्त 2016
सिएटल । 425-445-0827



जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #87

Sunday, August 7, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #86

Saturday, August 6, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #85

Friday, August 5, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #84

Thursday, August 4, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #83


Wednesday, August 3, 2016

जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #82

Tuesday, August 2, 2016

Marriage Counselor


चलो मिलाऊँ तुम्हें सब्ज़बाग़ों से
सच्चाई से परे शीरीं ख़्वाबों से

अब जो भी होगा सब अच्छा ही होगा
दर्शन बरसाऊँ ऐसी बातों से

जनम-जनम का साथ है तुम्हारा-तुम्हारा
आस बँधाऊँ ऐसे गानों से 

कड़वे वचन न अब कोई बोलेगा
वादे करवाऊँ लड़ने वालों से

ख़ुद के जीवन का कोई ठिकाना नहीं
मार्गदर्शन कर रहा हूँ कई सालों से

राहुल उपाध्याय | 2 अगस्त 2016 | सिएटल 
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सब्ज़बाग़ = काल्पनिक हरियाली 
शीरीं = मीठी 







जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #81

Monday, August 1, 2016

जब छूटेगा जग, तब शायद जग पाएँगे


चारदीवारी बिना होता आँगन नहीं
दरवाज़ा नहीं जिसकी साँकल नहीं
दुनिया में हैं ताले-चाबी 'राहुल' बहुत
देश नहीं जिसकी कोई बार्डर नहीं

तेरा-मेरा, मेरा-तेरा यहाँ होता बहुत
क्यूँकि किसी के भी पास नहीं होता बहुत
अपनी ज़रूरत तो किसी को मालूम नहीं
पर हाँ, दूसरे की ज़रूरत से है वो ज़्यादा ज़रूर

जोड़ते-जोड़ते सोना एक दिन थक जाएँगे 
बाल भी चाँदी जैसे पक जाएँगे 
ज़िन्दगी भर तो सोना छूटा नहीं
जब छूटेगा जग, तब शायद जग पाएँगे 

जीवन से है आशा, इसे नकारा नहीं
क्या हुआ जो हुआ कोई हमारा नहीं
धड़कता है दिल, मतलब सम्भावना तो है
सम-भावना से चाहे किसी ने पुकारा नहीं 

1 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827









जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #80