Thursday, July 27, 2017

प्रकाश ही प्रकाश है

सूरज उगता है

सूरज डूबता है

हर क्षण

बारह घंटे की दूरी पर


फिर कैसा दिन?

और कैसी रात?


फिर सुबह होगी ... 

एक भद्दा मज़ाक़ है


सूरज है आत्मा

धरती है माया

जो

जो है नहीं, वो दिखाती है

ख़ुद ही मुँह चुराती है

और सूरज को दोषी ठहराती है


दिन है, रात है

सुबह है, शाम है


बस

प्रकाश ही प्रकाश है


राहुल उपाध्याय | 27 जुलाई 2017 | सिएटल 

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: