Saturday, September 23, 2017

यादों की किताब

यादों की किताब

के पन्ने

कभी हवा खोल देती है

कभी मैं 


कभी गुनगुनाता हूँ

कभी मुस्कुराता हूँ

कभी हड़बड़ा के

किताब बंद कर देता हूँ


किताब

पुरानी हो चली है

जर्जर हो गई है

जिल्द खुल रही है

सिलाई उधड़ रही है

पन्ने बिखर रहे हैं

कुछ खो गए हैं

कुछ फट गए हैं


सोचता हूँ

कुछ पन्ने सहेज लूँ


कविताओं में


23 सितम्बर 2017

सिएटल | 425-445-0827

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